सिरमौर में कटेंगे सैकड़ों बकरे

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डीएनएन राजगढ सिरमौर
सिरमौर जिला के गिरीपार क्षेत्र के तीन विधान सभा क्षेत्रो शिलाई ,रैणुका व पच्छाद की लगभग 125 पंचायतो मे आगामी 11 जनवरी से 13 जनवरी तक एक ऐसा पारंपरिक पर्व मनाया जाता है जिसका नाम ही त्यौहार है मगर समय परिर्वतन के साथ इस त्यौहार का नाम माघी का त्यौहार भी पडने लगा है यह त्यौहार इस क्षेत्र का सबसे बडा त्यौहार माना जाता है और शायद सबसे खर्चीला पर्व भी यही है इस त्यौहार को मनाने की परंपरा कब से आरंभ हुई इस बारे मे कोई लिखित या ठोस प्रमाण नही है मगर अलग अलग लोगो का अलग अलग मत है कुछ लोगो का मानना है कि प्राचीन काल मे लोगो ने यहा राक्षसो से बचने के लिए व उनके नाश के लिए काली माता को खुश करने के लिए बकरा काटने की पंरपरा आरंभ हुई। चाहे कुछ भी हो यहा पर इस त्यौहार मे हजारो बकरो को अपना बलिदान देना पडता है चाहे कुछ भी कहा जाये मगर इस क्षैत्र के लोग सकैडो साल से इस त्यौहार को मनाते आ रहे है जिला के इस क्षेत्र मे लगभग पांच सौ के आस पास छोटे बडे गाःव है और हर गांव मे हर घर मे एक बकरा अवश्य कटता है और साधन संपन परिवार तो दो तीन बकरे काट लेते है और एक अनुमान के अनुसार इस पर्व के लिए लगभग 10 से 20 हजार बकरे कटते है ओर एक बकरे का मूल्य लगभग 15 से 20 हजार रूपये तक होता है सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र के लोगो खाली बकरो की खरीद पर ही करोडो रूपये खर्च करते है यह पर्व यहा तीन दिनो तक तक चलता है जिसे स्थानीय भाषा मे खडियांटी ,डिमलांटी ,उतरांटी व अलग अलग क्षेत्रो मे अलग अलग नामो से पुकारा जाता है मकर संक्राति के दिन को छोड कर यहा पुरे महीने मांसाहारी दावतो का दौर चलता है क्युकि इन दिनो यहा कृषि कार्य ना के बराबर होता है और लोग मोज मस्ती व मैहमान बाजी मे अपना समय बिताते है मांसाहारी दावतो के साथ यहा महीने भर चलने वाले इस त्यौहार मे मंदिरा सेवन भी खुव होता है रात्रि के समय मंनोरंजन के लिए विशेष पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन होता है जिसमे नाटी ,रासा,हार,हारूल,गीह ,करियाला आदि प्रमुख है। इसके इलावा मासांहारी पारंपरिक व्यजनो मे सीडो ,लूऊपला,पोटी,खोबले ,डोली ,राड,सालना आदि शामिल है।
इतना ही नही यहा शाकाहारी मेहमानो का भी पूरा इंतजाम होता है शाकाहारी पारंपरिक व्यजनो मे असकली ,लुश्के ,मालपुडे,सिडकू ,शाकुली, पटाडे आदि मीठे व नमकीन व्यजन परोसे जाते है अब यहा प्रश्न उठता है कि आखिर यहां इतने बकरे आते कहा से है यहा वेसे तो हर घर मे इस त्यौहार के लिए एक बकरा एक साल तक बडे शौक से पाला जाता है अपनी आवश्कता अनुसार कुछ घरो मे एक से अधिक बकरे भी पाले जाते है मगर अब दिन प्रति दिन बकरो को पालने मे लोगो की रूचि कम होने लगी है और पंजाब हरियाणा ,राज्यस्थान से काफी मात्रा मे बकरे खरीदे जाते है यहा सबसे मंहगा व सबसे बडा बकरा काटना अपनी शानो शौकत का प्रतीक माना जाता है यहा क्षैत्र के लोगो को इस त्यौहार को मनाने के लिए भारी भरकम कीमत चुकानी पडती है जिसकी कुछ हानिया तो कुछ लाभ भी है ।कुछ लोग यहा बकरे पालते है ओर इस त्यौहार को उनको बेच देते है जिससे उनको अच्छा लाभ मिल जाता है समय की मांग व बढती मंहगाई के साथ साथ इस त्यौहार का महत्व भी कम होने लगा है यहा कुछ समाजिक संगठन यहा लोगो को इस त्यौहार की हानियो के बारे मे लगातार जागरूकता फैलाने मे लगे है जिससे कुछ लोगो ने बकरे काटने बंद कर दिये है और वे इस त्यौहार को पूरी तरह सात्विक रूप से मनाते है जिससे पारंपरिक पंरपरा का निर्वहन भी हो जाता है और धन की बचत भी होती है और कुछ लोगो का मानना है कि इस मंहगी परंपरा का कुछ सस्ता विकल्प खोजा जाना चाहिये जिससे कि इस क्षेत्र के गरीब वर्ग को अधिक आर्थिक हानि ना उठानी पडे इसके इलावा कुछ लोगो का यह भी मानना है कि इस बकरे काटने की पंरपरा को पूरी तंरह बंद कर देना चाहिये ताकि इन बेजुबान जानवरो को ना मारा जाये हमे अपने मनोरंजन के लिए किसी की जान लेने का कोई अधिकार नही है।

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