DNN नौणी (सोलन)
डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी ने नेपाल के कृषि विभाग के अधिकारियों और किसानों के 30 सदस्य समूह के लिए 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया। भारत और नेपाल के विदेश मंत्रालयों के बीच यह सहयोगात्मक प्रयास सेब, अखरोट और कीवी की खेती में इस समूह के कौशल को बढ़ाने पर केंद्रित था।
नेपाल के करनाली और सुदुरपश्चिम क्षेत्रों से संबंध रखने वाले किसानों और अधिकारियों के इस समूह को नेपाल के संघीय और प्रांतीय कृषि मंत्रालय और भारत सरकार के विदेश मंत्रालय उत्तर प्रभाग, नेपाल अनुभाग, नई दिल्ली द्वारा इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए प्रायोजित किया गया था।
समापन सत्र के दौरान कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने दोनों देशों के बीच भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समानताओं पर प्रकाश डाला और पहाड़ी संस्कृति के संरक्षण की साझा जिम्मेदारी पर जोर दिया। प्रोफेसर चंदेल ने खेती की लागत कम करने और किसानों के लिए मुनाफा बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया और प्रतिभागियों से नवीन कृषि पद्धतियों को अपनाने का आग्रह किया। नेपाल के करनाली क्षेत्र में जैविक खेती की व्यापकता को देखते हुए, उन्होंने लागत प्रभावी और पर्यावरण अनुकूल प्राकृतिक कृषि पद्धति को अपनाने की सिफारिश की।
प्रोफेसर चंदेल ने सहकारी समितियों के महत्व पर भी जोर दिया और किसानों को सामूहिक उत्पाद विपणन के लिए छोटे समूह बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने देसी फसलों, लंबी शेल्फ लाइफ वाले मिल्लेट्स की खेती और स्थानीय मधुमक्खियों के संरक्षण का सुझाव दिया। कुलपति ने प्रतिभागियों को ऑनलाइन माध्यम से विश्वविद्यालय की ओर से निरंतर सहयोग का आश्वासन दिया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने बताया कि विदेश मंत्रालय द्वारा इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए विश्वविद्यालय को चुना गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य नेपाली कृषि अधिकारियों और किसानों के कौशल विकास और जैविक खेती में योगदान करना है। इस सहयोग के अंतर्गत यह पहला बैच था और भविष्य में लगभग 300 प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
संयुक्त निदेशक अनुसंधान डॉ. राजेश कौशल ने बताया कि सेब, अखरोट और कीवी पर इस प्रशिक्षण के दौरान विशेष ध्यान दिया गया। उन्होंने फल और सब्जीयों की खेती में प्रतिभागियों को व्यावहारिक अनुभव को रेखांकित किया। प्रशिक्षण में जैविक और प्राकृतिक खेती की पद्धतियों की जानकारी के साथ-साथ विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय स्टेशनों और हिमाचल प्रदेश बागवानी विभाग का दौरा भी शामिल रहा।
प्रगतिशील किसान लक्ष्मण खत्री ने मौलिक कृषि अवधारणाओं को स्पष्ट करने में प्रशिक्षण की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए दोनों देशों के मंत्रालयों और विश्वविद्यालय के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समूह की महत्वपूर्ण सीख प्राकृतिक खेती रही जिसने मिट्टी और पर्यावरण संरक्षण के बारे में उनका ज्ञान बढ़ाया। प्रशिक्षण का समापन प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरण के साथ हुआ।