DNN शिमला
महिला एवं बाल विकास निदेशालय हिमाचल प्रदेश ने प्रदेश में कार्यरत सभी मीडिया कर्मियों से आग्रह किया है कि बाल पीड़ितों से संबंधित समाचार प्रेषित एवं प्रकाशित करते समय विभिन्न अधिनियमों द्वारा निर्धारित प्रावधानों का पालन सुनिश्चित बनाएं। यह जानकारी आज यहां सरकारी प्रवक्ता ने दी।
उन्होंने कहा कि किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम-2015 की धारा 74 तथा यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम-2012 (पाॅक्सो एक्ट) की धारा 23(2) के तहत सभी प्रकार के मीडिया में बाल पीड़ितों की पहचान छिपाना अनिवार्य है।
उन्होंने बताया कि किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम-2015 की धारा 74 तथा यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम-2012 (पाॅक्सो एक्ट) की धारा 23(2) के तहत सभी प्रकार के मीडिया में बाल पीड़ितों की पहचान छिपाना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य बच्चों को नुकसान पहुंचाने से बचाना तथा उन्हें भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि उत्तरदायी मीडिया सदैव ऐसे संवेदनशील मामलों में गरिमापूर्ण रिपोर्टिंग करता रहा है। उन्होंने प्रिंट तथा इलैक्ट्राॅनिक मीडिया से आग्रह किया कि विधि के अनुरूप बाल पीड़ितों के नाम एवं अन्य विवरण प्रकाशित अथवा प्रसारित करने से परहेज करें ताकि ऐसे बच्चों की सुरक्षा पर कोई आंच न आए।
उन्होंने कहा कि बच्चों की निजता, गरिमा, शारीरिक और भावनात्मक विकास अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसे बच्चों पर और बच्चों के लिए रिपोर्टिंग, प्रसारण, समाचार के प्रकाशन, कार्यक्रम और वृत्तचित्रों के प्रसारण के दौरान हर समय सुरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि मीडिया की भूमिका को पाॅस्को अधिनियम, 2012 और किशोर न्याय अधिनियम, 2015 जैसे महत्वपूर्ण कानूनों में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है।
उन्होंने कहा कि किशोर न्याय (बाल देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम-2015 की धारा 74 के अनुसार बाल पीड़ित की पहचान प्रकाशित अथवा प्रसारित करने पर रोक लगाई गई है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका, न्यूज-शीट अथवा आॅडियो-विजुअल मीडिया या किसी भी पूछताछ या जांच या न्यायिक प्रक्रिया के संबंध में संचार के अन्य रूपों में किसी भी रिपोर्ट में बाल पीड़ित का नाम, पता या स्कूल या कोई ऐसी अन्य विशेष जानकारी नहीं दी जानी चाहिए जिससे पीड़ित बच्चे की देखभाल या सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चे या पीड़ित बच्चे या अपराध के गवाह की पहचान हो सकती है। इसके अतिरिक्त ऐसे किसी बच्चे की तस्वीर भी प्रकाशित नहीं की जानी चाहिए।
उक्त प्रावधान की अवहेलना पर अधिनियम की धारा 74(3) के तहत 6 माह तक का कारावास, 2 लाख रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों एक साथ हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि पाॅस्को अधिनियम, 2012 के तहत भी पीड़ित बच्चे की निजता और पहचान सभी चरणों में संरक्षित की जानी चाहिए। विशेष रूप से मीडिया में किसी पीड़ित बच्चे या गवाह के बारे में जानकारी जारी करने से बच्चे की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़ित बच्चे या गवाह के बारे में जानकारी जारी करने से परिवार, सहकर्मियों और समुदाय के साथ उनके संबंधों में तनाव आ सकता है तथा बच्चे की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है। उक्त प्रावधान की अवहेलना पर अधिनियम की धारा 23(4) के तहत 6 माह से एक वर्ष तक का कारावास, जुर्माना अथवा दोनों एक साथ हो सकते हैं।