हिमालय की चुनिंदा विकट पहाड़ियों पर पाए जाने वाला शिलाजीत अनेक व्याधियों में रामबाण का करता है काम करता है

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DNN रामपुर

29 मार्च। शिलाओं को जीत कर बाहर निकलने वाला प्रकृति का अनमोल उपहार शिलाजीत विकट एवं जोखिमपूर्ण चट्टानों में पाया जाता है। आयुर्वेद ग्रंथो के अनुसार औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इस की मांग अधिक रहती है। आयुर्वेद के अनुसार इसे किसी भी औषधि के साथ लेने पर उसके प्रभाव को बढ़ाने वाला माना जाता है। हिमालय, कुमाऊं और जम्मू कश्मीर क्षेत्र में शिलाजीत चट्टानों में बहुत कम स्थान पर पाया जाता है। जोखिमपूर्ण और विकट चट्टानों में होने के कारण इसे निकालना काफी मुश्किल रहता है। चट्टानों से रस के रूप में बाहर निकलने वाला प्रकृति का यह अनमोल काला पदार्थ चट्टानों से छीनी हथोड़े से पत्थर के टुकड़ो के साथ तोड़ कर निकालाजाता है। इन टुकड़ो को पानी में घोलने के बाद कपड़छान करते हुए कई दिनों तक शोधन किया जाता है। शिलाजीत चार प्रकार के होते हैं जिसमें स्वर्ण,रजत, तांबर व लोह। लोह आवरण वाले शिलाजीत को दवा के रूप में इस्तेमाल उत्तम माना जाता है। वैसे शिलाजीत को गंध के हिसाब से भी गौ मूत्र गंदी व् कर्पूर गंदी दो प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। गौ मूत्र गंदी आयुर्वेद में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। शिलाजीत को बहुत कम मात्रा में दूध , घी अथवा शहद के साथ लिया जा सकता है। शिलाजीत रक्त शोधन , मूत्र संबंधी व्याधि, खून साफ़ करने ,,ब्लड प्रेशर नियंत्रण , आर्थ्राइटस ,डायबटीज ,कोलस्ट्रोल,दिल की बीमारी , एनीमिया व थकाम कम करने जैसे अनेक बीमारियों में काफी फायदेमंद रहता है। शिलाजीत को 2 तरह से तैयार किया जाता है इसमें आग तापी व सूर्य तापी। इस में सूर्य तापी को उत्तम माना जाता है,क्योंकि शोधन करने के बाद शिलाजीत वाले पानी को सूर्य की किरणों से सूखा कर तैयार किया जाता है।

डॉक्टर सुमेश कटोच ने बताया शिलाजीत का वर्णनन आयुर्वेद शास्त्रों में यह किसी भी दवा के साथ प्रयोग करने से उसके प्रभाव को बढ़ाता है असर को बढ़ाता है। शिलाजीत कुमाऊं ,कश्मीर और हिमालयन रेंज में मिलता है। यह योगवाई होने के कारण कैटलिस्ट की तरह काम करता है। शिलाजीत लवन रस प्रधान होता है। शिलाजीत कफ, मूत्र जन्य , शुक्र जन्य व्याधियों में काम करता है। इम्युनिटी को बढ़ाने में भी सहायक है। उन्होंने कहा अभी इस पर प्रयोग हाइपोथॉरिज्म हाइपरथॉरिज्म चल रहा है।उन्होंने कहा आयुर्वेदा की दृष्टि से यह चार प्रकार के होते है। इसमें स्वर्ण माक्षिक , रजत माक्षिक, लोह और ताम्बर माक्षिक है। इस में लोह शैक्षिक को उत्तम मानते हुए मेडिकल साइंस में प्रयोग किया जा रहा है। दुसरा इस को गंद के हिसाब से भी क्लासिफिकेशन करते है। दो तरह की गंध होती है एक मूत्र गंदी व् कर्पूर गंदी। मूत्र गंदी का ही दवाओं के रूप में प्रयोग करते हैं। इसको 2 तरह से तैयार किया जाता है। एक सूर्य तापी और दूसरा अग्नि तापी लेकिन सूर्य तापी को ज्यादा प्रभावी माना जाता है।

डॉक्टर सुमेश कटोच ने बताया शिलाजीत का वर्णनन आयुर्वेद शास्त्रों में यह किसी भी दवा के साथ प्रयोग करने से उसके प्रभाव को बढ़ाता है असर को बढ़ाता है। शिलाजीत कुमाऊं ,कश्मीर और हिमालयन रेंज में मिलता है। यह योगवाई होने के कारण कैटलिस्ट की तरह काम करता है। शिलाजीत लवन रस प्रधान होता है। शिलाजीत कफ, मूत्र जन्य , शुक्र जन्य व्याधियों में काम करता है। इम्युनिटी को बढ़ाने में भी सहायक है। उन्होंने कहा अभी इस पर प्रयोग हाइपोथॉरिज्म हाइपरथॉरिज्म चल रहा है।उन्होंने कहा आयुर्वेदा की दृष्टि से यह चार प्रकार के होते है। इसमें स्वर्ण माक्षिक , रजत माक्षिक, लोह और ताम्बर माक्षिक है। इस में लोह शैक्षिक को उत्तम मानते हुए मेडिकल साइंस में प्रयोग किया जा रहा है। दुसरा इस को गंद के हिसाब से भी क्लासिफिकेशन करते है। दो तरह की गंध होती है एक मूत्र गंदी व् कर्पूर गंदी। मूत्र गंदी का ही दवाओं के रूप में प्रयोग करते हैं। इसको 2 तरह से तैयार किया जाता है। एक सूर्य तापी और दूसरा अग्नि तापी लेकिन सूर्य तापी को ज्यादा प्रभावी माना जाता है।

नेपाली आकाश मगर ने बताया कि शिलाजीत निकालने में बहुत दिक्कत होती है. यह काम  जोखिमपूर्ण होता है। अभी वे रस्से से अपने को बाँध कर चट्टान में लटकने वाले है। अगर गलती से  गिर गया तो आदमी मर सकता है। चट्टान  में  शिलाजीत काफी ऊंचाई पर होता है निकालने में दिक्कत होती है जान जोखिम में डालकर शिलाजीत  निकालना पड़ता है।

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