सोलन में बनी हिमाचली टोपी बनी राष्ट्रपति के सिर का ताज

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डीएनएन सोलन
टोपी हिमाचल प्रदेश की शान है। यहां टोपी से ही पहचान की जा सकती है कि यह व्यक्ति कुल्लू का है, किन्नौर का है या अन्य जिले का। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस हिमाचली टोपी व मफलर पहनकर अमेरिका व इजराइल की यात्रा की थी, उसी कारीगर के हाथ से बनी हिमाचली टोपी पहनकर शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोबिंद ने 69वें गणतंत्र दिवस समारोह पर राजपथ से सलामी ली। दुनियाभर के लोगों ने राष्ट्रपति के सिर पर सजी हिमाचली टोपी देखी। इस हिमाचली टोपी को सोलन के मशहूर कारीगर संगत सिंह पुंडीर ने तैयार किया था।

पुंडीर कैसे पहुंचे राष्ट्रपति भवन तक
संगत सिंह पुंडीर ने बताया कि राष्ट्रपति को हिमाचली टोपी से विशेष लगाव है। सांसद वीरेंद्र कश्यप ने सोलन में उनसे राष्ट्रपति के लिए हिमाचली टोपी ली थी, जिसकी वह थोड़ी गहराई कम करवाना चाहते थे। इसके बाद सांसद के माध्यम से उन्हें राष्ट्रपति भवन से बुलावा आया। 20 जनवरी 2018 को संगत सिंह पुंडीर, अपने बेटे अभिनव पुंडीर व सांसद वीरेंद्र कश्यप के साथ दिल्ली राष्ट्रपति भवन पहुंचे। राष्ट्रपति ने करीब सवा घंटे तक हिमाचली टोपियों के बारे में विस्तार से बातचीत की। राष्ट्रपति ने हिमाचली टोपी को लेकर अपनी च्वाइस बताई, कि उन्हें कैसी टोपी पसंद है। पुंडीर ने 21 जनवरी को दिल्ली से सोलन आकर राष्ट्रपति की पसंद के मुताबिक चार टोपियां बनाई और सांसद वीरेंद्र कशयप को 22 जनवरी को हैंड ओवर कर दी। गणतंत्र दिवस समारोह में जब राष्ट्रपति के सिर पर उन्होंने अपनी बनाई टोपी देखी तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

शिमला रैली के दौरान मोदी के लिए ठाकुर ले गए थे मफलर व टोपी
संगत सिंह पुंडीर ने बताया कि विधानसभा चुनाव से पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिमला आए थे, तब प्रदेश महामंत्री भाजपा ठाकुर चंद्रमोहन उनसे प्रधानमंत्री के लिए मफलर और टोपी ले गए थे। उन्होंने बताया कि जो प्रधानमंत्री को मफलर भेंट किया, उसको बनाने में करीब दो माह लगे थे। इसमें हैंडवर्क था। शिमला में मोदी को भेंट की गई टोपी और मफलर को प्रधानमंत्री ने अपने अमेरिका व इजराइल दौरे के दौरान पहना था।

फायरमैन से कैसे बना टोपी का कारीगर
सिरमौर के भुजौंड गांव निवासी संगत सिंह पुंडीर ने कैसे कुल्लवी व किन्नौरी टोपी बनाने में महारत हासिल की इसके पीछे एक रोचक बात है। संगत सिंह पुंडीर ने बताया कि वह अग्निशमन विभाग में फायरमैन के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 1990 में उनका स्थानांतरण जिला मुख्यालय नाहन से कुल्लू हो गया। उन्हें पेटिंग का शौक था और कुछ नया करना चाहते थे। कुल्लू में अपनी जॉब के साथ-साथ खाली समय में डूग्लेराम ठाकुर से टोपी, मफलर व शॉल बनाना सीखते थे। 1992 में उन्होंने कुल्लू में टोपी, शॉल व मफलर बनाने के लिए सैटअप तैयार किया और पार्ट टाइम काम शुरू कर दिया। वर्ष 2002 में उनका स्थानांतरण सोलन हो गया। यहां भी उन्होंने अपना सैटअप तैयार किया और काम में जुटे गए।, जब उनका काम अच्छा चला तो उन्होंने अग्निशमन विभाग से प्रीमैच्योर रिटायरमेंट ले ली और अपने धंधे में जुट गए। अपनी मेहनत और लग्न के कारण आज देश-विदेश में उनकी टोपियों, मफलर व शॉल की डिमांड है। इस कार्य में उनकी पत्नी सुनीता पुंडीर भी उनकी मदद करती है।

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