DNN सोलन
वरिष्ठ राजनीतिज्ञ, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने कहा कि हिन्दी भाषा को उसका न्यायोचित स्थान प्रदान करने के लिए हम सभी को हिन्दी के प्रति हीन भावना से बाहर आना होगा और अपनी मानसिकता को बदलना होगा। शांता कुमार आज यहां हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 72वें अधिवेशन एवं परिसंवाद के सभापति के रूप में उपस्थित साहित्यकारों एवं विद्वानजनों को संबोधित कर रहे थे।
शांता कुमार ने कहा कि भाषा न केवल विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है अपितु भाव अभिव्यक्ति का साधन भी है। उन्होंने कहा कि भाषा के महत्व को जानकर ही विश्वभर की प्राचीन संस्कृतियों ने अपनी भाषा के विकास पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृति का सार अपनी भाषा में ही अभिव्यक्त होता है। भाषा उन्नति का मूल है और अपनी भाषा में वार्तालाप करने एवं अभिव्यक्ति पर सभी को गर्व होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भाषा के प्रति स्वाभिमान का भाव आवश्यक है। वर्तमान में हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभिमान की कमी के कारण ही यह भाषा राष्ट्र एवं राजभाषा नहीं बन सकी है। उन्होंने कहा कि हिन्दी भाषा लगभग एक हजार वर्ष पुरानी है और अब समय आ गया है कि हिन्दी को उसका यथोचित स्थान दिया जाए।
शांता कुमार ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर अपने धर्म और भाषा को थोपने का प्रयास किया। उस समय देश को मानसिक रूप से गुलाम बनाने का षड़यंत्र रचा गया। उन्होंने कहा कि तब महापुरूषों ने जहां एक ओर स्वतंत्रता संग्राम के माध्यम से देश की स्वतंत्रता के यज्ञ में योगदान दिया वहीं अंग्रेजी भाषा से मुक्ति के लिए हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा आंदोलन किया गया। इस दिशा में हिंदी साहित्य सम्मेलन का योगदान अविस्मरणीय है।
उन्होंने कहा कि सभी को यह समझना होगा कि हम अंग्रेजी भाषा से नहीं अपितु अंग्रेजी भाषा की दासता से मुक्ति की बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी विश्व की एक समृद्ध भाषा है। उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में भारतीय अपनी सफलता का परचम लहरा रहे हैं और उनके साथ हिन्दी भी विश्वव्यापी बनी है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि वे हिंदी भाषा को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनवाने का प्रयास करें। उन्हें पूर्ण विश्वास है कि प्रधानमंत्री इस दिशा में उसी प्रकार सफल होंगे जैसे उन्होंने 165 देशों के समर्थन से योग को विश्व पटल पर स्थापित किया है।
शांता कुमार ने सम्मेलन में देशभर से आए मनीषियों का स्वागत करते हुए कहा कि विद्वानजनों के आगमन से प्रदेश गौरवान्वित अनुभव कर रहा है।
उन्होंने श्याम कृष्ण पांडेय द्वारा लिखित पुस्तक ‘युवा पहल: संघर्षः आजादी’, उत्तम चौहान द्वारा लिखित पुस्तक ‘क्योंथली बोली’ तथा डॉ. मुकेश शर्मा द्वारा लिखित संस्कृत पुस्तक ‘हमीर महाकाव्यस्य मध्यकालीन इतिहास दृष्टिया समीक्षणम’ का विमोचन भी किया।
सोलन में पहली बार आयोजित इस तीन दिवसीय सम्मेलन के प्रथम दिन एक राष्ट्र, एक भाषा एवं साहित्य संपदा पर सारगर्भित विचार किया जा रहा है।
सम्मेलन में साहित्य के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार को साहित्य वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया जाएगा।
सम्मेलन में शांता कुमार की धर्मपत्नी शैलजा, प्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. राधारमण शास्त्री, पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफत, पूर्व सांसद प्रो. वीरेंद्र कश्यप, प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, श्याम कृष्ण पांडेय, प्रो. अभिराज राजेंद्र मिश्र सहित अन्य साहित्यकार, विद्वानजन एवं गणणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।