सिरमौर में लहसुन उत्पादकों की आय बढ़ाने के लिए प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन महत्वपूर्ण

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सिरमौर जिले में किसानों की आय बढ़ाने के लिए लहसुन बीज उत्पादन और मूल्य संवर्धन’ विषय पर दो दिवसीय जिला स्तरीय संगोष्ठी आज डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी  एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में शुरू हुई। यह कार्यक्रम मसालों पर केंद्र प्रायोजित एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत बीज विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसे भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सुपारी और मसाला विकास निदेशालय, कालीकट (केरल), द्वारा समर्थित किया गया है। संगोष्ठी में सिरमौर जिले से लगभग 100 प्रगतिशील लहसुन उत्पादक भाग ले रहे हैं।

प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. नरेंद्र भारत ने बताया कि विभाग 2015-16 से इस परियोजना को हिमाचल में क्रियान्वित कर रहा है और अब तक 4000 से ज्यादा किसानों तक यह परियोजना पहुंची है।

यह पहल खेतों पर प्रदर्शन, बीज उत्पादन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, प्राकृतिक कृषि पद्धतियों और बीज भंडारण के लिए बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से लहसुन, अदरक, हल्दी, धनिया और मेथी जैसे मसाला फसलों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देती है। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रयासों के तहत विभाग हर साल चार पंचायत स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम और एक जिला स्तरीय संगोष्ठी आयोजित करता है।

लहसुन की खेती में बढ़ती रुचि पर प्रकाश डालते हुए डॉ. भरत ने बताया कि सिरमौर में लहसुन की खेती का एरिया 2015-16 में 1,500 हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2024 में लगभग 4,000 हेक्टेयर हो गया है और वार्षिक उत्पादन लगभग 60,000 मेट्रिक टन तक पहुंच गया है। हालांकि, उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर से खरीदे जाने वाले लहसुन के बीजों पर प्रति वर्ष इस जिला के किसान लगभग 60 करोड़ रुपये खर्च करते है।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने भारतीय संस्कृति में मसालों के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने दोहराया कि मसाला फसलों की खेती,  विशेष रूप से लहसुन, जिसे सिरमौर के लिए ‘एक जिला, एक उत्पाद’  घोषित किया गया है, किसानों की आय बढ़ाने का एक आशाजनक मार्ग प्रदान करता है।

उन्होंने बाजार में अधिक फसल आने की स्थिति में उत्पाद का गिरने वाली कीमतों के मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने वैज्ञानिकों से किसानों को खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन में कौशल से लैस करने का आह्वान किया। प्रो. चंदेल ने किसानों से स्थानीय बीज उत्पादन के लिए विश्वविद्यालय के साथ सहयोग करने का आग्रह किया ताकि बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम हो और युवाओं के लिए उद्यमशीलता के अवसर पैदा हों। उन्होंने विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को लहसुन के तेल निष्कर्षण और दवा उद्योग की ज़रूरतों का पता लगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया ताकि किसानों की आय को और बढ़ाया जा सके। प्रो चंदेल ने लहसुन की शेल्फ लाइफ, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने और अवांछित अंकुरण को कम करने के लिए रेडीऐशन प्रौद्योगिकी के उपयोग का अध्ययन करने का भी सुझाव दिया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने लहसुन की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया और किसानों की लाभप्रदता बढ़ाने के लिए इनपुट लागत को कम करने की वकालत की। किसानों के लिए बेहतर बाजार पहुंच और सामूहिक सौदेबाजी सुनिश्चित करने में किसान उत्पादक कंपनियों  की भूमिका को रेखांकित किया।

किसानों की मांग के आधार पर, सेमिनार के दौरान बीज उत्पादन, जर्मप्लाज्म संरक्षण, पौध संरक्षण और मूल्य संवर्धन जैसे प्रमुख विषयों पर चर्चा की जाएगी। खाद्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग विभिन्न मूल्य वर्धित लहसुन उत्पादों को तैयार करने के लिए व्यावहारिक प्रदर्शन भी करेगा। इसके अलावा, भाग लेने वाले किसानों के द्वारा स्थानीय लहसुन किस्मों की एक प्रदर्शनी-सह-प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी। स्वदेशी किस्मों के संरक्षण और उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे।

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