सहकारिता में क्षेत्र विधिक अस्पष्टताओं एवं मानकों को बदला जाएगा: जयराम

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डीएनएन सोलन
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सहकारिता क्षेत्र में पुराने पड़ चुके अधिनियमों तथा मानदंडों को आवश्यकतानुसार बदला जाना आवश्यक है। सहकारिता क्षेत्र में विधिक अस्पष्टताओं एवं मानकों को या तो बदला जाएगा अथवा उनमें संशोधन किया जाएगा। प्रदेश सरकार आम जन से प्राप्त सुझावों के अनुरूप सहकारिता क्षेत्र से संबंधित अधिनियमों एवं प्रावधानों में आवश्यक परिवर्तन करेगी। जयराम ठाकुर आज सोलन में ‘हिमाचल प्रदेश में सहकारिता आंदोलन, 21वीं शताब्दी की चुनौतियां एवं सम्भावनाएं’ विषय पर राज्य स्तरीय सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हालांकि हिमाचल सहकारिता क्षेत्र में पिछड़ गया है तथापि हमें इस क्षेत्र को लाभप्रद एवं सकारात्मक वृद्धि प्रदान करने वाला बनाना होगा। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश कृषि तथा बागवानी क्षेत्रों में आदर्श बनकर उभरा है तथा देश के अन्य राज्य हमारा अनुसरण कर रहे हैं। किन्तु कुछ अन्य क्षेत्रों में हमें उन राज्यों का अनुसरण करना होगा जो सहकारिता के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सहकारिता आंदोलन काफी समय पूर्व आरंभ हुआ किन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम इस क्षेत्र में पिछड़ गए हैं।
जयराम ठाकुर ने कहा कि आज के समय की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है तथा सहकारी समितियों को सुदृढ़ कर युवाओं को लाभप्रद रोजगार प्रदान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी कमजोरी स्वीकार करने में झिझकना नहीं चाहिए। सकारात्मक सुझाव एवं कठिन परिश्रम सहकारी सभाओं को लाभप्रद बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि इससे प्रदेश के लोगों के सामाजिक-आर्थिक स्तर को मज़बूत बनाने में सहायता मिलेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे सम्मेलन नियमित अंतराल पर आयोजित किए जाने चाहिएं। इन सम्मेलनों में हुआ विचार-विमर्श सहकारी समितियों के प्रभावी कार्यान्वयन में सहायक सिद्ध हो सकता है। जयराम ठाकुर ने कहा कि यदि सभी राजनीतिक दल एक विषय पर एकमत हो जाएं तो इससे प्रदेश के विकास को गति मिलेगी। उन्होंने कहा कि हिमाचल सहकारी क्षेत्र में त्वरित गति से आगे बढ़ना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि कृषि तथा बागवानी क्षेत्र हमारी प्राथमिकता हैं। प्रदेश सरकार अधिक से अधिक कृषि तथा बागवानी आधारित प्रसंस्करण इकाईयां स्थापित करने, बेहतर अधोसंरचना सृजित करने के लिए दृढ़ संकल्प है ताकि उत्पाद को विपणन के लिए अधिक बाजार एवं लंबी अवधि प्राप्त हो सके। उन्होंने कहा कि सहकारी क्षेत्र पर्यटन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि इस दिशा में प्रदेश सरकार को सुझाव दें। सहकारिता क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए सुप्रसिद्ध तथा सहकारिता की अवधारणा को जन-जन तक पहुंचाने वाले, सहकार भारती के संरक्षक डॉ. सतीश मराठे ने कहा कि सहकारी सभाओं को पुनः जीवंत करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि देश में 8.50 लाख सहकारी समितियां पंजीकृत हैं। इन समितियों की कुल सदस्यता 28 करोड़ से अधिक है। भारतीय सहकारी आंदोलन विश्व में सबसे बड़ा है। उन्होंने कहा कि देश के लगभग सभी गांवों में आम लोगों द्वारा चलाई जा रही सहकारी समितियां कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में सहकारी समितियों का विशेष योगदान है। उन्होंने इस क्षेत्र की वृद्धि की रूकावटों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि देश में कुछ चुनौतियों के कारण सहकारी क्षेत्र को आय सृजन करने के पूर्ण अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य, जल संसाधन प्रबंधन एवं वितरण, पाईप के माध्यम से उपलब्ध करवाई जाने वाली प्राकृतिक गैस एवं अन्य कई क्षेत्रों में निजी उद्यमियों को भागीदार बनाने के कारण सेवाओं को वहन करने योग्य नहीं बनाया जा सका है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
उन्होंने कहा कि दुग्ध उत्पादन, कृषि तथा कुछ अन्य क्षेत्रों को छोड़कर सहकारी क्षेत्र उत्पादन एवं सेवा क्षेत्र में अधिक नहीं कर पाया है। देश में कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण लगभग 20 प्रतिशत है। इसे बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मात्र समर्थन मूल्य बढ़ाने से किसानों को लाभ नहीं मिलेगा। कृषि क्षेत्र में अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए लघु सचल संस्करण इकाईयां स्थापित करना समय की मांग है।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा सहकारिता मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने इस अवसर पर कहा कि प्रथम राष्ट्रीय सहकारी समिति वर्ष 1892 में हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के पंजावर में आरंभ हुई थी। उन्हांेने सहकारिता क्षेत्र की रूकावटों को दूर करने तथा प्रदेश को सहकारी क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य बनाने पर बल दिया।

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