विविध कृषि गतिविधियों से जानिए कैसे बढ़ाए आय

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DNN सोलन

कृषि-पर्यावरण विकास सोसाइटी (एइडीएस) द्वारा डाॅ. वाई.एस. परमार कृषि एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के सहयोग से आज सोलन में विश्व-विकास की दृष्टि से ‘कृषि, पर्यावरण एवं संबंधित विज्ञान में उद्यतन प्रगति’ (आरएएइएएसजीडी-2019) पर आयोजित द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कृषक गतिविधियों में विविधता लाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन, जड़ी-बूटियों की खेती, कृषि, मुर्गी पालन और पशुपालन जैसी गतिविधियां अपनाने के प्रति प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि फसल न होने की स्थिति में किसानों को आय के वैकल्पिक साधन उपलब्ध हो सकें।

    राज्यपाल ने कहा कि भविष्य में नवीनतम प्रौद्योगिकी और सही नीतियां एक सतत एवं समान वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। वैश्विक स्तर पर एक ऐसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए, जिससे प्रत्येक को पेट भर भोजन मिल सके और प्राकृतिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना गरीबी को भी काफी हद तक कम किया जा सके। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय आपदाओं के बावजूद, कृषि अभी भी एक बेहतर उद्यम है और मौलिक रूप से औद्योगिक क्षेत्र से भिन्न है। दत्तात्रेय ने कहा कि कृषि से जुड़े उद्यम कृषकों की आय बढ़ाने और गरीबी उन्मूलन में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कृषि की भूमिका खाद्य और पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित करने, पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सृजन में दिन-प्रतिदिन महत्वपूर्ण होती जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत दूध, दालंें और जूट का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, और चावल, गेहूं, गन्ना, मूंगफली, सब्जियां, फल और कपास के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश के रूप में है और यह मसालों, मछली तथा पशुधन जैसी गतिविधियों में भी अग्रणी है। उन्होंने कहा कि हालांकि, भारत में अभी भी उत्पादन के संबंध में कई चुनौतियां हैं परन्तु इसके समाधान के लिए वैज्ञानिक अपनी भूमिका निभा रहे हैं।

जैसा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में विविधता और वृद्धि हुई है, जीडीपी में कृषि का योगदान अन्य क्षेत्रों की तुलना में लगातार कम हुआ है। जबकि भारत में अनाज के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल की है, लेकिन ज्यादातर किसान अपनी पारम्परिक फसलें ही उगाना चाहते हैं जिससे कृषि लागत ज्यादा आती है और आय भी ज्यादा नहीं हो पाती है।

जल स्रोतो के अंधाधुंध दोहन पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए राज्यपाल ने कहा कि इस संबंध में नीतियों के पुनःनिर्धारण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कृषि में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने के लिए कुछ प्रमुख आवश्यकताएं हैं, जिनमें किसानों को उनके उत्पाद की अच्छी कीमत सुनिश्चित करना, निवेश लागत कम करना, जलवायु अनुकूल फसलों को बढ़ावा देना, उचित और अधिक स्थानीय भंडारण क्षमता बढ़ाना, खाद्यान्न का वितरण और मिट्टी में सुधार और पानी की गुणवत्ता इत्यादि हैं। उन्होंने कहा कि कृषि आय बढ़ाने के लिए उत्पादों की सीधी मार्केटिंग होनी चाहिए ताकि किसानों को उनकी उपज की बेहतर कीमत मिल सके और उन्हें बिचैलियों से भी दूर रखा जा सके। उन्होंने कहा कि यह किसानों के लिए सुविधाजनक और लोकप्रिय मार्किट सुविधाएं विकसित करने से ही संभव होगा। विशेष रूप से सब्जियों के मामले में, ग्राम सभा और महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी के साथ गोदाम सुविधाओं का निर्माण किया जाना भी आवश्यक है।

राज्यपाल ने कहा कि कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सिंचाई की नई तकनीकों का भी प्रयोग किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कृषि से जुड़े अन्य पहलुओं जैसे फसल उपरान्त प्रबन्धन तथा भण्डारण क्षमता बढ़ाने पर भी विशेष ध्यान देने को कहा। इससे पहले, नौणी विवि के कुलपति डॉ परविंदर कौशल ने विश्वविद्यालय की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी और बताया कि इस सम्मेलन में 15 राज्यों और पांच देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में कृषि वैज्ञानिकों ने खाद्यान्न के उत्पादन में बड़ी भूमिका निभाई है। डॉ कौशल ने कहा कि जनसंख्या में वृद्धि देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक चिंता है। उन्होनें कहा कि जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी कृषि क्षेत्र के लिए एक चुनौती है। उनका विचार था कि कृषि विश्वविद्यालय की पर्यावरण के अनुकूल कृषि तकनीक और फसलों की प्रतिरोधी किस्में के विकास में बड़ी भूमिका है।

 

 

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