डीएनएन राजगढ़
लोक संस्कृति के संरक्षण व संवधज़्न में अहम भूमिका निभाने वाली चूड़ेश्वर लोक सांस्कृतिक मण्डल जालग लुप्त हो रहे डग्यालटी नृत्य पर कार्य कर रही है और शीघ्र ही इसकी मंचीय प्रस्तुति की जाएगी। यह बात मण्डल के मुख्य सलाहकार व राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित विद्यानन्द सरैक ने यहां एक पत्रकार वार्ता में कही। हाल ही में लोक संस्कृति के लिए राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले विद्यानन्द सरैक ने कहा कि उन्हें जो सम्मान मिला है, उसका श्रेय सबसे पहले सिरमौर की प्राचीन हाटी संस्कृति को जाता है और उसके बाद चूड़ेश्वर लोक सांस्कृतिक मण्डल को जाता है। जिसने उन्हें कुछ नया करने का मंच दिया। उन्होंने लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए दशकों पूर्व हिमाचल निर्माता डा. यशवंत सिंह परमार व वैद्य सूरत सिंह ने पहाड़ी कलाकार संघ बनाकर जो कार्य किया था वह अविस्मरणीय है और उन्हीं की प्रेरणा व मार्ग दर्शन के चलते वह आज यह सर्वोच्च पुरस्कार प्राप्त कर पाए है। उन्होंने कहा कि गिरिपार क्षेत्र की लोक संस्कृति समृद्ध है, यहां के लोक कलाकारों ने आजादी से पूर्व भी देश मे अपना नाम दजज़् किया था। जिसमें कुब्जा शलाना गांव से सम्बन्ध रखती थी, जबकि सनियों गांव की मुक्ता सेठी व रामप्यारी ने लाहौर में ‘दीनो दुनियाÓ फि़ल्म में काम किया था। उन्होंने कहा कि मण्डल के कलाकारों ने मण्डल के प्रधान जोगेंद्र हाब्बी के सहयोग से बसन्त से शिशिर तक के गीतों, स्वांग, करियाला, सिंहटू व भडय़ालटू पर पिछले सोलह वर्षों से कार्य किया है। मण्डल के कलाकारों ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपनी लोक संस्कृति को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करने में सफलता पाई है। उन्होंने कहा कि पुरस्कार मिलने से उन्हें नई ऊर्जा और प्रेरणा मिली है, वह अब अधिक उत्साह से लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए कार्य करेंगे। मण्डल के प्रधान जोगेंद्र हाब्बी ने कहा कि लुप्त होते डग्यालटी नृत्य पर कार्य प्रगति पर है। इसके शोध व मंचीय प्रस्तुति में कालकर जुटे है, शीघ्र ही इसका मंचीय प्रदशज़्न कोय जाएगा।
