ऐसा ट्रैक जिस पर इंजन नहीं, जमीन पर बिछा रस्सा खींचता है डिब्बे

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DNN शिमला (रमेश वर्मा)
अंग्रेजों के जमाने में एशिया के सबसे बड़े पानी से बिजली पैदा करने वाले हाइडल पावर प्रोजेक्ट को लगाने का फैसला हिमाचल में लिया गया। वजह थी कि हिमाचल में नदियों से बिजली पैदा कर सकते थे। अंग्रेजों ने अपनी जरूरत की बिजली पैदा करने के लिए मंडी जिले के शानन में प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी की। लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए पानी पहुंचाना बड़ी चुनौती थी। अंग्रेज इंजीनियर कर्नल बेसिक कोंडन बेटेये को ये पावर प्रोजेक्ट लगाने का जिम्मा दिया गया। इसी पावर प्रोजेक्ट की वजह से ही दुनिया भर का ऐसा ट्रैक बनाया गया जिस पर रेल का डिब्बा चल तो रहा है, लेकिन किसी ईंजन की मदद से नहीं बल्कि लोहे के रस्से की मदद से खींचकर चलाया जा रहा है।

गांव के लोगों का नहीं लगता किराया
इस ट्रैक को सिर्फ इसलिए बनाया गया था कि शानन प्रोजेक्ट के लिए पानी स्टोर करने के लिए बरोट में बनने वाले टैंक को बनाने का सामान पैदल पहुंचाना आसान नहीं था। इसलिए अंग्रेजों ने वो सामान पहुंचाने के लिए यह ट्रैक बनवाया। आज भी ये ट्रैक काम कर रहा है। इस ट्रैक पर आज रेजरवायर के लिए सामान ही नहीं ढोया जाता बल्कि आसपास के गांवों के लोग भी इसमें सफर करते हैं। उनसे कोई किराया भी नही लिया जाता। इस ट्रैक पर सामान ढोने के लिए 6 डिब्बे हैं।

ट्रैक के पुराने स्लीपर बदलना चुनौती
इस ट्रैक पर अभी भी अंग्रेजों के लगाए गए लकड़ी के स्लीपर हैं। लेकिन अब इनकी हालत काफी खराब हो चुकी है। स्लीपर बदलने के लिए शानन पॉवर प्रोजेक्ट प्रबंधन ने हिमाचल सरकार के लकड़ी की मांग की है। इस ट्रैक पर स्लीपर न मिलने की वजह से ही बरोट से तीन किलोमीटर इन दिनों ट्रैक बंद है।
रोजाना 100 लोग करते हैं सफर:डिब्बे में अमूमन शानन प्रोजेक्ट के अधिकारी या कर्मचारी ही जाते हैं। शानन पॉपर हाउस से लेकर टाॅप पर कथायड़ू के बीच आसपास गांव हैं। इन गांवों के लोगों को भी ये डिब्बा लेकर चलता है। स्कूल के बच्चे आम तौर पर खड़ी चढ़ाई पैदल चलने के बाद अगर डिब्बा मिल जाए तो उसी में घर की तरफ जाते हैं। स्थानीय लोगों को बिठाने के लिए ये डिब्बा कहीं भी रोक दिया जाता है। लेकिन इस सवारी का स्थानीय लोगों से कोई किराया नहीं लिया जाता। रोजाना कम से कम 50 आैर 100 से ज्यादा लोग इस डिब्बा में सफर करते हैं।

 

हैरत में डालता है सिग्नल देने का तरीका
आम तौर रेलवे ट्रैक पर कंट्रोल रूम या रेलवे स्टेशन को सिग्नल देने के लिए आधुनिक तकनीक को इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस ट्रैक पर कहीं भी आगे पत्थर गिरने से पैदा होने वाले रिस्क या फिर स्थानीय लोगों को बैठाने-उतारने के लिए रोकने की खातिर सिग्नल देने का तरीका बिलकुल ही हैरत में डाल देता है। असल में डिब्बे में कोई इंजन तो है नहीं, इसलिए डिब्बे को संचालित करने वाला कर्मचारी ट्रैक के साथ डिब्बे की ऊंचाई पर ही साथ चल रही लोहे की तार से पहाड़ी पर बने कंट्रोल रूम को डिब्बे को खड़े करने या चलाने का सिग्नल देता है। क्योंकि ये लोहे की तार पहाड़ी पर एक घंटी से बंधी है। अब अगर डिब्बे को रोकना है तो कर्मचारी साथ चल रही लोहे की तार को लकड़ी के डंडे से एक बार जोर से मारेगा। डंडे से मारने पर तार हिलती है तो ऊपर पहाड़ी पर एक बार घंटी बजती है तो कर्मचारी ट्रैक को खींचने वाला रस्से को रोक देता है। चलने के लिए डिब्बे में बैठा कर्मचारी 5 बार डंडा मारेगा तो पहाड़ी पर 5 बार घंटी बजने का मतलब है कि अब डिब्बे को चलाना है।

रस्से को खींचता है मोटर आॅपरेटेड रोलर
इस ट्रैक पर चलने वाले डिब्बे के आगे लोहे का मोटा रस्सा ट्रैक पर ही बिछा है। ट्रैक पर ये रस्सा हर 15 मीटर की दूरी पर लगे रनर के ऊपर से निकलता है। लेकिन इस रस्से को खींचने के लिए पहाड़ी पर मोटर आॅपरेटिड रोलर लगाया गया है। यह रोलर बिजली से चलता है। रोलर ही इस रस्से को डिब्बे के चढ़ाई में चढ़ते हुए खींचता और उतराई में उतरते हुए छोड़ता है। जब डिब्बे पहाड़ी में ऊपर की तरफ आते हैं तो लोहे का मोटा रस्सा एक बड़े रोलर में रोल होता जाता है। लेकिन जब डिब्बे नीचे की तरफ उतरते हैं तो लोहे का रस्सा रोलर से उतरता जाता है।

खासियतें
-इस ट्रैक पर 6 फेज में डिब्बा बफर स्टॉप से चलकर बरोट पहुंचता है।
-ये सफर 3300 मीटर की ऊंचाई से शुरू होकर चोटी पर 7900 फीट की ऊंचाई पर पहुंचता है। फिर ऊंची चोटी से फिर नीचे की तरफ 6 हजार फीट पर बरोट में खत्म होता है।
-इस ट्रैक पर 9.25 किमी का सफर इस डिब्बे में लगभग 3 घंटे 5 मिनट में पूरा होता है।
-इस ट्रैक पर एक तरफ इतनी खड़ी चढ़ाई है कि डिब्बे में बैठे लोगों को पकड़कर बैठना पड़ता है।
-कथायड़ू से जीरो प्वाइंट की तरफ बढ़ते हुए डिब्बे में बैठे लोगों को पूरी तरह पकड़कर बैठना पड़ता है।
-ट्रैक पर डिब्बे को कहीं भी राेका जा सकता है। डिब्बे को चलाने के लिए चोटी पर कंट्रोल रूम है, जहां से लोहे के मोटे रस्से से डिब्बे को खींचा जाता है।

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