हिमाचल में प्राकृतिक खेती से जुड़े हैं 1.53 लाख से ज़्यादा किसान, सरकार से मिले 46 करोड़ से ज़्यादा के लाभ

Featured Mandi Others

DNN मंडी, 4 जनवरी ।

हिमाचल के किसानों को प्रदेश सरकार की प्राकृतिक खेती-खुशहाल किसान योजना खूब भा रही है। प्रकृति और किसान दोनों के लिए मुफीद यह खेती जहर मुक्त खेती व सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तौर पर भी जानी जाती है।  जय राम सरकार के प्रयासों से हिमाचल में 1 लाख 53 हज़ार से ज़्यादा किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं। सरकार से उन्हें अब तक 46 करोड़ से ज़्यादा के लाभ प्राप्त हुए हैं। अभी प्रदेश में  9192 हैक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा रही है ।

वहीं अगर बात करें मंडी ज़िले की तो जिले में 26143
किसानों को इस कृषि पद्धति से जोड़ा जा चुका है तथा 1165 हैक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की जा रही है ।
कृषि विभाग मंडी के आतमा परियोजना के उपनिदेशक डॉ. ब्रहम दास जसवाल बताते हैं कि प्राकृतिक खेती द्वारा तैयार उत्पादों की बिक्री के लिए पंजीकरण प्रमाण पत्र भी मुहैया करवाए जा रहे हैं ताकि किसानों को प्राकृतिक उत्पाद बेचने में कोई परेशानी न हो ।
बता दें, 27 दिसंबर को मंडी के पड्डल मैदान में सजी विकास प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के प्राकृतिक खेती मॉडल की खूब सराहना की थी।

किसानों की आय दोगुनी करने में कारगर

प्राकृतिक खेती किसानों की आय दोगुनी करने में बड़ी सहायक है। इसमें एक तो लागत लगभग शून्य के बराबर है, वहीं खाद, केमिकल स्प्रे व दवाईयां खरीदने के भी पैसे बचते हैं। केवल किसान के पास देसी नस्ल की गाय होनी चाहिए, जिससे वे खाद व देसी कीट नाशक बना सकता है। इनके इस्तेमाल से प्रकृति भी स्वच्छ रहती है। दूसरा इस पद्धति में क्यारियां, मेढ़ें बनाकर मिश्रित खेती की जाती है, जिससे किसानों की आय दोगुनी करने में भी यह बहुत कारगर है। प्राकृतिक खेती के तहत खेतों में मुख्य फसल के साथ मूंगफली, लहसुन, मिर्च, दालें, बीन्स, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, अलसी, धनिया की खेती की जा रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है। इस खेती में बीज कम लगता है, उत्पादकता ज्यादा है।
घर पर बना सकते हैं कीट नाशक
घर पर देसी गाय के गूंत्र और गोबर तथा घर पर ही आसानी से उपलब्ध सामान जैसे खट्टी लस्सी, गुड़, खेतों में मिलने वाली वे जड़ी-बूडियां जिन्हें गाय नहीं खाती, उनकी पत्तियों को इस्तेमाल कर खुद जीवामृत, घनजीवामृत व अग्निअस्त्र आदि देसी कीट नाशक दवाईयां बनाई जाती हैं।। खेतों में उनका इस्तेमाल कर फसल की कीटों से सुरक्षा की जाती है।
सरकार दे रही सब्सिडी
डॉ. ब्रह्म दास जायसवाल बताते हैें कि हिमाचल सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। देसी नस्ल की एक गाय खरीदने के लिए 25 हजार रुपए तक की सहायता, किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण, जीवामृृत बनाने के लिए 250 लीटर के ड्रम लेने पर लागत पर 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है।
इसके अलावा जिन लोगों के पास देसी गाय है उनकी पशुशाला में फर्श डालने और गून्त्र व गोबर को एकत्र करने को चैंबर बनाने के लिए 8 हजार रुपए दिए जा रहे हैं। जिन्हें जीवामृत अथवा घन जीवामृत बनाने व बेचने के लिए संसाधन भंडार बनाना हो उन्हें 10 हजार रुपए के अनुदान का प्रावधान है।
क्या कहते हैं जिलाधीश
जिलाधीश अरिंदम चौधरी का कहना है कि मंडी जिले में शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्ररित किया जा रहा है। जहर मुक्त खेती से भंयकर बीमारियों से बचा जा सकता है साथ ही लागत शून्य होने के चलते किसानों के खर्चों की बचत व मिश्रित खेती तथा अच्छी पैदावार से उनकी आमदनी दोगुनी करने में भी यह सहायक है।

News Archives

Latest News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *