DNN सोलन
9 फ़रवरी। राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक खेती को गति मिलने के साथ ही डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के वैज्ञानिक देश भर के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के वैज्ञानिकों को इस कृषि पद्धति पर प्रशिक्षण देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। प्राकृतिक खेती में पिछले कई वर्षों से कार्य कर रहे नौणी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक देश भर के केवीके वैज्ञानिकों के लिए आईसीएआर के विभिन्न प्रशिक्षणों में संसाधन व्यक्तियों के रूप में कार्य कर रहे हैं। हाल ही में जोधपुर में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला ‘आउट स्केलिंग ऑफ नेचुरल फार्मिंग थ्रू केवीके’ में राजस्थान के 19, हरियाणा के 18 और दिल्ली के एक सहित 38 केवीके के नोडल अधिकारियों ने भाग लिया। इस कार्यशाला का उद्घाटन नौणी विवि के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने किया, जिन्होंने प्राकृतिक खेती में अपने अनुभव और विशेषज्ञता को साझा किया और कहा कि पारिस्थितिकी के संरक्षण के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण उत्पादन और एक स्वस्थ आबादी को बनाए रखने के लिए प्राकृतिक खेती सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। प्रतिभागियों को वर्चुअली संबोधित करते हुए प्रोफेसर चंदेल ने कहा कि प्राकृतिक खेती ने कृषि अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में नए आयाम खोले हैं। उन्होंने प्रतिभागियों और प्रतिनिधियों को विभिन्न पहलुओं और प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ देश में प्राकृतिक खेती की संभावनाओं के बारे में भी बताया। नौणी विवि के तीन वैज्ञानिक, जो पिछले कई वर्षों से प्राकृतिक खेती में कार्य कर रहे हैं, इस प्रशिक्षण के दौरान विशेषज्ञ प्रशिक्षक रहे। बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के हैड डॉ. एन.के. भरत, सब्जी विज्ञान विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. कुलदीप ठाकुर और फल विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा ने संसाधन व्यक्तियों के रूप में प्रशिक्षण में भाग लिया और केवीके वैज्ञानिकों के साथ प्राकृतिक खेती पर ज्ञान साझा किया। इससे पहले भी विश्वविद्यालय ने अटारी जोन I लुधियाना के लिए इसी तरह के प्रशिक्षण की मेजबानी की थी जिसमें पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख के केवीके के वैज्ञानिकों ने भाग लिया था। वैज्ञानिकों को प्राकृतिक खेती पद्धति में प्रशिक्षित किया गया। विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ देश के अन्य हिस्सों के विभिन्न केवीके को आभासी प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ गुजरात विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के साथ मिलकर भी प्राकृतिक कृषि गतिविधियों पर कार्य कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती पर काम कर रहे गुजरात विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट विद्वानों ने भी प्राकृतिक खेती के तरीकों के बारे में जानने के लिए कुछ माह पूर्व विश्वविद्यालय का दौरा किया था।